2014 में भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सत्ता में आयी तो 2019 में भी उन्हीं की अगुवाई में सत्ता वापसी में कामयाब रही। लेकिन प्रदेशों में पार्टी के साथ ऐसा कुछ नहीं रहा जो सीएम एक बार पूर्व हो गए हैं उनकी वापसी पर ग्रहण सा लग गया है।
राजनीति में जो पूर्व होता है वह वर्तमान भी हो जाता है और जो वर्तमान में होता है वह पूर्व भी हो जाता है। कहने का मतलब यह है कि राजनीति में संभावनाओं का द्वार हमेशा खुला रहता है। जो वर्तमान में जिस पद पर है वह पूर्व हो जाता है और जो पूर्व में किसी पद पर रह चुका है वह वर्तमान में वापसी भी कर लेता है। लेकिन भाजपा के साथ ऐसा बहुत कम देखने को मिला है। राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो भले ही भाजपा अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों को वापस सत्ता में लाने में कामयाब रही लेकिन वह जब तक जीतते रहें तब तक तो लगातार बने रहें। 13 दिन की सरकार जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के ही नाम पर 1998 में भाजपा ने चुनाव लड़ा था। भाजपा ने चुनाव में जीत दर्ज किया। 1 साल बाद वापस उनके ही नाम पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और इस बार भी पार्टी ने जीत दर्ज की। हालांकि 2004 में हारने के बाद वाजपेयी सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके थे लेकिन पूर्व उप प्रधानमंत्री होने के नाते लालकृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री होने की संभावनाएं काफी दिख रही थी। पार्टी ने 2009 का चुनाव उनके नाम पर लड़ा लेकिन जनादेश नहीं मिल सका और आडवाणी पूर्व उप प्रधानमंत्री ही बने रहे।